काम-कला करती हुई फिरने लगीं। पर गौतम ने उनकी ओर दृष्टि
उठाकर भी न देखा । अंत में जब मार थक गया, तब वह उनके
सामने स्वयं उपस्थित हुआ और उन्हें अनेक प्रकार के लौकिक
आमोद-प्रमोद की प्रलोभना देने लगा; पर गौतम ने उसकी एक भी
न सुनी । फिर उसने गौतम पर ताने मारना आरंभ किया। उस ने
कहा-"गौतम, तूने राज्य-सुख अवश्य भोग किया है, तू मोक्ष का
अधिकारी कदापि नहीं हो सकता । तूने पुण्य भी.संचय नहीं किया
है और न तूने राजा होकर यन्त्र ही किया है । किस वल पर तू
मोक्ष की कामना कर मुमुक्षु बन वोधिमूल के नीच वक-ध्यान लगा
कर बैठा है ? इस प्रकार मार की बातें सुन गौतम ने अग्नि, वायु,
सूर्य, चंद्र, दिशा, प्रदिशा आदि देवताओं को साक्षी देते हुए पृथिवी
पर टंकार मारी और कहा- ': .
यज्ञो मया यष्टस्त्वमिहात्र साक्षी, .
निरर्गलः पूर्वभवेऽनवद्यः । . .
तवेह साक्षी न तु कश्चिदस्ति .. . .
किंचित्प्रलापेन पराजितस्त्वम् : ..
इगं मही सर्वजगत्प्रतिष्ठा
अपक्षपाता सचराचरे समा
इयं प्रमाणं मम नास्ति मे मृषा . . .
साक्षी त्वमस्मिन्मम संप्रयच्छतु ॥ . .
मैंने यज्ञं किया, इसके लिये ये सब साक्षी हैं । पर निरगेल और
अनेक जन्मों से अननद्य, तेरा कोई साक्षी नहीं है । यह पृथिवी
पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/९९
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