पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१७०

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करत अनशन व्रत कोऊ, कोउ कृच्छ चांद्रायण करैं।
धूरि में कोउ जाय लोटत, राख कोउ मुहँ में भरैं।
करत रसना सुन्न कोऊ जड़ी बूटी चाबि हैं;
स्वाद की सब वासना या भाँति पावत दाबि हैं।

काटि कर पग, छाँटि डारी जीभ कोऊ आपनी;
काँचि आँखिन, नोचि कानन, कनक सी काया हनी,
विकल अंगविहीन, गतिहत, मूक, बहरो, आँधरो,
जियत मृतक समान है पलपिंड सो भू पै परो।

कायदंड कठोर जो सहि लेत हैं सारे यहीं
कठिन यम की यातना रहि जाय पुनि तिनको नहीं।
क्लेश सारे जीति सुंदर देवगति ते लहत हैं
वेद शास्त्र पुराण गम बात ऐसी कहत हैं।

जाय बचन भगवान एक सोँ योँ कहे
"अहो! क्लेश यह घोर आप तो सहि रहे।
बीते मास अनेक मोहिँ या ठौर हैं;
देखे आप समान तपत बहु और हैं।

है या जीवन माहिँ दुःख थोरो कहा
औरहु बिढ़वत आप क्लेश जो यह महा?"
बोल्यो तापस "और कहा हम जानिहैं?
ग्रंथन में जो लिखो चलत सो मानि हैं।