पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२६८

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करौ जेतो भलो तेतो लहौ फल अभिराम।
करौ खोटो नेकु ताको लेहु कटु परिणाम।

क्रोध कैसो? क्षमा कैसी? शक्ति करति न मान।
ठीक काँटे पै तुले सब होत तासु विधान।
काल की नहिँ बात; चाहे आज अथवा कालि
देति प्रतिफल अवसि सो निज नियम अविचल पालि।

याहि विधि अनुसार घातक मरत आपहि मारि,
क्रूर शासक खोय अपनो राज बैठत हारि,
अनृतवादिनि जीभ जड़ ह्वै रहति बात न पाय,
चोर ठग हैं हरत धन पै भरत दूनो जाय।

रहति शक्ति प्रवृत्त सत की लीक थापन माहिँ;
थामि अथवा फेरि ताको सकत कोऊ नाहिँ।
पूर्णता औ शांति ताको लक्ष्य, प्रेमहि सार।
उचित है, हे बन्धु! चलिबो ताहि के अनुसार।
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कहत हैं सब शास्त्र कैसी खरी चोखी बात-
होत जो या जन्म में सब पूर्व को फल, भ्रात!