पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२६९

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पूर्व पापन सोँ कढ़त हैं शोक, दुःख, विषाद ।
होत जो सुख आज सो सब पूर्व-पुण्य-प्रसाद ।

बवत जो सो लुनत सब ; वह लखौ खेत दिखात
अन्न सोँ जहँ अन्न उपजत, तिलन सोँ तिल, भ्रात !
महाशून्य अपार परखत रहत सब संसार ।
मनुज को है भाग्य निर्मित होत याहि प्रकार ।

बयो पहले जन्म में जो अन्न तिल बगराय
सोइ काटन फेरि आवत जीव जन्महिं पाय ।
बेर और बबूर, कंटक झाड़, विष की बेलि
गयो जो कछु रोपि सो लहि मरत पुनि दुख झेलि ।

किन्तु तिनको जो उखारै लाय उचित उपाय
और तिनके ठौर नीके बीज रोपत जाय
स्वच्छ, सुन्दर, लहलही ह्मै जायहै भू फेरि,
प्रचुर राशि बटोरि सो सुख पायहै पुनि हेरि ।

पाय जीवन लखै जो दुख कढ़त कित सोँ आय,
सहै पुनि धरि धीर तन पै परत जो कछु जाय ;
पाप को वा कियो जो सब पूर्व जीवन माहि
सत्य सम्मुख दंड पूरो भरै, हारै नाहिं;