पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२८१

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फेरि तीसरी दशा 'अनागामी' की पावत,
तजि विचिकित्सा मोह 'पंच प्रतिबंध’ नसावत ।
जनमत नहिं या कामलोक में पुनि सो आई;
ब्रह्मलोक में लहत'जन्म यह लोक विहाई ।
'अर्हत्' की पुनि परति अवस्था सब सोँ ऊपर;
जन्म आदि को बंधन नहिं रहि जात लेश भर ।
सब दुःखन सोँ परे, मुक्त माया सोँ सारी
होत बुद्धगण आए या पद के अधिकारी ।

जैसे वा हिमश्रृङ्ग बीच बैठ जो बाँके
छाँड़ि नील नभ और नाहिँ कछु ऊपर ताके
तैसे जो प्रतिबंध पाँच ये देत नसाई
पहुँचि जात निर्वाणधाम के तट पै जाई ।
नीचे ताके परे ताहि सुरगण सिहात सब ;
तीन लोक को प्रलय होय पै डिगै न सो तब ।
सब जीवन है तासु, मृत्यु मरि जाति ताहि हित
ताके नहिं पुनि कर्म बनैहैं नए भवन नित ।
चाहत सो कछु नाहिँ, लहत पै सब कछु निश्चय;
अहं भाव तजि देखत है सब जगत् आत्ममय ।
यदि कोऊ यह कहै "नाश निर्वाण कहावत"
बोलो तासोँ "झूठ कहत तुम, भेद न पावत।"


*पंच प्रतिबंध―आलस्य,हिंसा, काम, विचिकित्सा, मोह ।