पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/२८७

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( २२६ ) करत व्योम में जो विहार नाना विधि जाई जागे पंछिन सरिस विषयकोटरन बिहाई । सिखै तिन्हें 'दशशील सात 'बोध्यंग' बताए 'ऋद्धिपाद के द्वार, 'पंचबल' कहि समझाए; औ 'विमोक्ष सोपान आठ सुंदर दरसाए; १ दशशील-हिंसा, स्त्येन, व्यभिचार, मिथ्याभाषण, प्रमाद, अप- राह्नभोजन, नृत्यगीतादि, मालागंधादि. उच्चासन शय्या और द्रव्यसंग्रह का त्याग । बोध्यंग-स्मृति, धर्मप्रविचय (पुण्य), वीर्य, प्रीति, पश्रन्धि, समाधि और अपेक्षा। ३ ऋद्धिपाद-अर्थात् असामान्य क्षमता की प्राप्ति ४ पंचबल -श्रद्धाबल, समाधिबल, वीर्यबल, स्मृतिबल और प्रज्ञाबल। ५ अष्टविमोक्षसोपान -(१) रूपभावना के कारण वाह्य जगत् में रूप दिखाई पड़ना (२) मन में रूप भावना न रहने पर भी वाह्य जगत् में रूप दिखाई पड़ना (३) न मन में रूप भावना रहना न वाह्य जगत् में रूप दिखाई पड़ना (४) रूपलोक अति- क्रमण कर अनंत आकाश की भावना करते हुए 'अाकाशानं- त्यायतन' में विहार (५) श्राकाशानंत्यायतन का अतिक्रमण कर अनंत विज्ञान की भावना करते हुए विज्ञानानंस्यायतन' में विहार (६) विज्ञानानंत्यायतन का अतिक्रमण कर 'अकिंचन' (कुछ नहीं) की भावना करते हुए अकिंचन्यायतन में विहार' (७) अकिंचन्यायतन का अतिक्रमण कर नैवसंज्ञानैवासंज्ञा- यतन (ज्ञान और अज्ञान दोनों नहीं) की भावना करते हुए" नैवसंज्ञानैवासंज्ञायतन में विहार (5) अंत में ज्ञान औ ज्ञाता दोनों का निरोध कर 'संज्ञावेदयित' उपलब्ध करना ।