पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/६९

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हेरि महिमा महादेवी पै सहित सम्मान
हरी डार नवाय सुन्दर दियो तानि वितान।
भूमि सहसा लाय सुमनन दई सेज सजाय।
न्हायबे हित ताहि सोता विमल फूटो आय।

कियो रानी ने प्रसव विनु पीर शिशु अवदात
बुद्ध के बत्तीस लक्षण रहे जाके गात।
पहुँचिगो संवाद शुभ प्रासाद में तब जाय।
लेन तिनको गई चित्रित पालकी चट आय।

मेरु तें चलि आय बाहक बने सब दिक्पाल
कर्म प्राणिन के लिखत जे रहत हैं सब काल।
पूर्व को दिक्पाल आयो, जासु अनुचर-जाल
रजत अंबर धवल धारे, लिए मुक्ता ढाल।

चल्यो दक्षिणपाल लै कुंभांडगण्ड की भीर,
नील वाजिन चढ़े, नीलम ढाल साजे बीर।
चल्यो पश्चिमपाल जाके नागगण हैं संग
गहे ढाल प्रवाल की, औ चढ़े रक्त तुरंग।

घेरि उत्तरलोकपालहिं कनकमंडित गात
पीत हय पै स्वर्ण ढालन सजे यक्ष लखात।
शक्तिधर सब देव आएं अलख वैभव संग;
पालकी पै दियो कंध लगाय सहित उमंग।