पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/८४

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पहुँच्यो वाही ठौर कुँवर जहँ ध्यान लगाया।
पहर तीसरो चढ़यो ध्यान नहिं भंग भयो पर।
अस्ताचल की ओर बढ़े भगवान भास्कर।
छाया घूमीँ सकल; किंतु जामुन की छाहीँ
रही एक दिशि अड़ी, टरी प्रभु पर तें नाहीं;
जामें प्रभु के पावन सिर पै परै न आई
रवि की तिरछी किरन, ताप प्रभु और बढ़ाई।
लख्यो दूत यह चरित हिये अति अचरज मानी
जामुन की मंजरिन वीच फूटी यह बानी-
"रहिहै इनकं हृदय ध्यान की छाया जो लौं
नाहिं सरकिहै कतहुँ हमारी छाया तो लौं।"