बुद्ध और बौद्ध-धर्म १५० हैं। कुछ बौद्ध भिक्षुणिये बहुत प्रसिद्ध हुई हैं जिनमें क्षमा, उपाकना और विसाखा ये बहुत ही प्रसिद्ध हैं। महवेश्या भी एक बड़ी भारी चौद्ध भिक्षुणी हुई है। इन स्त्रियों का नाम त्याग, दया, क्षमा, ज्ञान और तप के कारण अमर हो गया है। विदेशी इतिहासज्ञों तक ने इनकी बारम्बार प्रशंसा की है। और वौद्ध- धर्म के प्रचार में इन्हीं वियों का सब से बड़ा भारी हाथ रहा था आप भवभूति के प्रसिद्ध नाटक मालती माधव को पढ़िये । उसकी प्रधान पात्री मालती का विवाह उसके प्रेमी माधव के साथ एक बौद्ध भिक्षुणी कराती है। और वह भिक्षुणी योगसिद्धान्तों का और अपनी जादू की विद्याओं का भी चमत्कार बताती है। तिब्बत में बौद्ध-धर्म का प्रचार दो राज कुमारियों ने किया था। उन्होंने तिब्बत की राजधानी लाशा में बहुत से मन्दिर बनवायें और अनेकों मठों की स्थापना की है। चीन और जापान से अनेकों विचित्र-विचित्र प्रकार की अद्भुत मूर्तियाँ लाकर वहाँ स्थापित की जो आज भी उन अद्भुत मूर्तियों में बौद्ध-धर्म की प्राचीन चतुराई बद्धिमत्ता और शिल्पविद्या की उत्कृष्टता अङ्कित है। वर्तमान मनुस्मृति जोकि वुद्धकाल में बनाई गई, एक काल्प- निक और जाली पुस्तक है । उसमें वर्णित स्त्री-धर्म को देखा जाय तो हमें मालूम होगा कि इसमें खियों की प्रतिष्ठा का केवल ढोंग किया गया है। यह पुस्तक त्रियों को पूजा करने की चीज जरूर बताती है परन्तु मनु के मत में त्रियों की पूजा वैसी ही है जैसी कि वर्तमान समय के हिन्दुओं की गौ पूजा। वे उन्हें कसकर रस्सी
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