पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बुद्ध और बौद्ध-धर्म १५८ 5 देवताओं के प्रिय राजा प्रियदसी को इन धर्म-शिक्षाओं के प्रचार के लिए धन्यवाद है कि आज जीवधारी पशुओं का सत्कार, माता- पिता की आज्ञा का भक्ति के साथ पालन और वृद्धों का श्रादर होता है, जैसा कि कई शताब्दियों तक नहीं रहा । अन्य विषयों की नाईं इस विषय में भी धर्म का विचार किया गया है, और देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इसको बराबर प्रचलित रखेगा। देवताओं के प्रिय राजा पियदसी के पुत्र, पौत्र और परपौत्र इस धर्म के प्रचार को सृष्टि के अन्त तक रक्षित रक्खेंगे । धर्म और भलाई में बढ़ रहकर वे लोग धर्म की शिक्षा देंगे, क्योंकि धर्म की शिक्षा देना सब कार्यों से उत्कृष्ट है, और भलाई के बिना कोई धर्म का कार्य नहीं होता । धार्मिक प्रेम का हढ़ होना और उसकी वृद्धि होना वाँच्छनीय है। इस उद्देश्य से यह शिलालेख खुदवाया गया है कि वे लोग अपने को इस सर्वोच्च भलाई के कार्य में लगावें, और उसकी अवनति न होने दें। देवताओं के प्रियराजा पियदसी ने इसको अपने राजगद्दी पर बैठने के बारह वर्ष पीछे खुदवाया है। सूचना ५- देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इस भांति बोला-पुण्य करना कठिन है, और जो लोग पुण्य करते हैं, वे कठिन कार्य करते हैं। मैंने स्वयं वहुत-से पुण्य के कार्य किये हैं। और, इसी भांति मेरे पुत्र-पौत्र और मेरी सबसे अन्तिम सन्तति कल्पांत तक पुण्य के कार्य करेगी । और, जो इस कार्य के करने में चूकेगा, वह पाप का भागी होगा। पाप करना सहज है । देखो, प्राचीन