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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१६२

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१५६ महान बुद्ध सम्राट अशोक समय में धर्म का प्रबन्ध करनेवाले कर्मचारी (धर्ममहामात्र ) नहीं थे। परन्तु मैंने अपने राज्याभिषेक के तेरहवें वर्ष में धर्म के प्रबन्ध करनेवाले नियत किये हैं। वे लोग सब सम्प्रदाय के लोगों से धर्मके स्थापित करने और उन्नति करने के लिए और धर्मयुतों की भलाई करने के लिए मिलते हैं। वे योद्धाओं और ब्राह्मणों के साथ गरीब- अमीर और वृद्धों के साथ, उनकी भलाई और सुख के लिए और सत्यधर्म के अनुयायियों के मार्ग को सब विघ्नों से रहित करने के लिए मिलते हैं। जो लोग बन्धनों में हैं, उन्हें वे सुख देते हैं, और उनकी बाधाओं को दूर करके उन्हें मुक्त करते हैं, क्योंकि उन्हें अपने कुटुम्ब का पालन करना पड़ता है, वे धोखे का शिकार हुए हैं, और वृद्धावस्था ने उन्हें श्रा घेरा है। पाटलिपुत्र तथा अन्य नगरों में वे मेरे भाई-बहनों और अन्य सम्बन्धियों के घर में यत्न करते हैं । सर्वत्र धर्ममहामात्र लोग सच्चे धर्म के अनुयायियों, धर्म में लगे हुए, और धर्म में दृढ़ लोगों और दान करनेवालों के साथ, मिलते हैं। इसी उद्देश्य से यह सूचना खुदवाई गई है। . सूचना ६- देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इस प्रकार बोला-प्राचीन समय में हर समय कार्य करने और विवरण सुनने की ऐसी प्रणाली कभी नहीं थी। इसे मैंने ही किया है। हर समय, खाने के विश्राम के समय, शयनागार में, एकान्त में, अथवा वाटिका में, सर्वत्र वे कर्मचारी लोग मेरे पास आते-जाते हैं, जिन्हें