पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१६३

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वुद्ध और बौद्ध-धम मेरी प्रजा के काम-काज के विषय की सूचना का भार दिया गया है, और मैं अपनी प्रजा के सम्बन्ध की बातें उनके द्वारा कहला देता हूँ। स्वयं मेरे मुख से कही हुई शिक्षाओं को मेरे धर्ममहामात्र लोग प्रजा से कहते हैं। इस प्रकार मैंने यह श्राज्ञा दी है कि जहाँ कहीं धर्मोपदेशकों की सभाओं में मतभेद वा झगड़ा हो, उसकी सूचना मुझे सदा मिलनी चाहिए क्योंकि न्याय के प्रवन्ध में जितना उद्योग किया जाय, थोड़ा है । मेरा यह धर्म है कि मैं शिक्षा द्वारा लोगों की भलाई करूँ। निरन्तर उद्योग और न्याय का उचित प्रबन्ध सर्वसाधारण के हित की जड़ है, और इससे अधिक फल- दायक कुछ नहीं हैं । अतएव मेरे सब यत्नों का एक यही उद्देश्य अर्थात् सर्वसाधारण से इस प्रकार उऋण होना है। मैं यहाँ इसके नीचे उन्हें इतना सुखी रखता हूँ | जितना मेरे किए हो सकता है। व भविष्यत् में स्वर्ग में सुख पावें । इसी उद्देश्य से मैंने यह सूचना यहाँ खुदवाई है कि वह बहुत समय तक बनी रहे, और मेरे पुत्र- पौत्र और परपौत्र मेरी नाई सर्वसाधारण का हित करें। इस बड़े उद्देश्य के लिए बहुत ही अधिक उद्योग की आवश्यकता है। सूचना ७- देवताओं के प्रिय राजा पियदसी की यह बड़ी अभिलापा है कि सब स्थानों में सब जातियाँ अपीड़ित रहें, वे सब समान रीति से इन्द्रियों का दमन करें, और आत्मा को पवित्र बनावें, परन्तु मनुष्य अपनी संसारी बातों में अधीर हैं। इस कारण लोग जिन बातों को मानते हैं, उनके अनुसार कार्य पूर्ण रीति से नहीं करते, ,