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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१६६

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१७६ महान बुद्ध सम्राट अशोक को प्राप्त करना छोटों और बड़ों दोनों ही के लिए कठिन है, जबतक वे अपने को सब वस्तुओं से अलग करने का दृढ़ उद्योग न करें। विशेषतः बड़े लोगों के लिए इसका उद्योग करना बड़ा कठिन है। सूचना ११-। देवताओं के प्रिय राजा पियदसी ने इस प्रकार कहा । धर्म के दान, धर्म की मित्रता, धर्म की भिक्षा और धर्म के सम्बन्ध के समान कोई दान नहीं है । निम्न लिखित बातें करनी चाहिएँ. अर्थात् गुलामों और नौकरों पर यथोचित ध्यान रखना, माता-पिता की आज्ञा पालन करना, मित्रों,संगियों, सम्बन्धियों, श्रीमानों और ब्राह्मणों की ओर उदार भाव रखना और प्राणियों के जीवत्त का सत्कार | पिता को, पुत्र था भाई, मित्र, संगी या पड़ोसी को भी यही शिक्षा देनी चाहिए कि यह प्रशंसनीय है और इसे करना चाहिए । इस प्रकार यत्न करने में उसे इस संसार में तथा आने वाले जीवन में फल प्राप्त होता है, धर्म के दान से अन्त में यश , मिलता है। सूचना १२-- देवताओं का प्रिय राजा पियदसी सब पन्थ के लोगों का, सन्यासियों और गृहस्थों दोनों ही का सत्कार करता है । वह उन्हें भिक्षा तथा अन्य प्रकार के दान देकर सन्तुष्ट करता है, परन्तु देवताओं का प्रिय ऐसे दान या सत्कार को उनके वास्तविक धर्म आचरणों की उन्नति के उद्योग के सामने कुछ नहीं समझता । यह सत्य है कि भिन्न-भिन्न पंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के पुण्य समझे