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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१६९

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म कलिंग देश में इतने अधिक लोगों के डूब जाने, उजड़ जाने, मारे जाने और गुलाम बनाये जाने के कारण देवताओं का प्रिय इसका अाज हजार गुना अधिक अनुभव कर रहा है। देवताओं का प्रिय सब प्राणियों की रक्षा, जीवन के सत्कार, शान्ति और दया के पाचरण का उत्सुक हृदय से अभिलापी है। इसी को देवताओं का प्रिय धर्म का विजय करना समझता है। अपने राज्य तथा उसके सब सीमा-प्रदेशों में, जिसका विस्तार कई सौ योजन है, इन्हीं धर्म के विजयों में देवताओं का प्रिय बड़ा प्रसन्न होता है। उसके पड़ोसियों में यवनों का राजा एण्टिोकस और एण्टिोकट के उपरान्त चार राजा लोग अर्थात् टोलेमी, एंटिगोनस,मेगेस और सिकन्दर दक्षिण में तंवपन्नी नदी तक चोल तथा पंञ्य लोग और हेनराज विस्मवसी भी,यूनानियों और कबोजों में नामक और नामपंति लोग भोज और पेतेनिक लोग अन्ध्र और पुलिन्द लोग-सर्वत्र लोग देवताओं के प्रिय भी धार्मिक शिक्षाओं के अनुकूल हैं । जहाँ कहीं देवताओं के प्रिय के दूत भेजे गये, वहाँ लोगों ने देवताओं के प्रिय की ओर से जिस धर्म के कर्तव्यों की शिक्षा दी गई, उसे सुना और उस धर्म तथा धार्मिक शिक्षाओं से सहमत हुए, और सहमत होंगे' 'इस प्रकार विजय चारों ओर फैलाई गई है। मुझे अत्यन्त आनन्द प्राप्त हुआ है, धर्म के विजयों से ऐसा सुख ही होता है। पर सच तो यह है कि यह आनन्द एक दूसरी बात है। देवताओं का प्रिय केवल उन फलों को बहुत अधिक समझता है, जो दूसरे जन्म में अवश्य मिलेंगे।