२०१ महान बुद्ध सम्राट अशोक 9 3 थी। बड़ी सड़कें ३२ फुट और राजमर्ग ६४ फुट चौड़े होते थे। घोड़े, हाथी, पालकी, रथ और बैलगाड़ियाँ चलती थीं। व्यापार का माल वैलगाड़ियों, ऊँटों, गधों और मनुष्यों पर लदता था । जल-मार्ग का प्रबन्धक एक स्वतन्त्र विभाग था। यात्रियों को नियत मूल्य पर समय पर नाव मिल जाती थी। मार्ग में चोरों और डकैतों से उनकी रक्षा की जाती थी। पुल लकड़ी, ईंट, पत्थर के होते थे,जो इन्हींके निरक्षण में थे । सरकारी घाट और मछुत्रों के घाट पृथक्-पृथक् थे। मछली का व्यापार भी इसी विभाग के - अधीन था। - खज़ाना राज्य की खास आमदनी भूमि कर से थी । सम्राट् पैदावार का पाँचमाँश लेता था। मालगुजारी की दृष्टि से गाँव ५ कक्षाओं में विभक्त थे । एक, जो राज्य-कर से मुक्त थे। दूसरे वे, जो नियत संख्या में सिपाही दिया करते थे। तीसरे वे, जो अन्न, रुई, पशु या द्रव्य देते थे, चौथे दूध-दही देते थे, पाँचवें मुफ्त मजूर या बना हुआ माल देते थे। प्रत्येक गाँव के गोप (मुखिया) के पास बही होती थी, उस में प्रत्येक गृह का नाम, जाति, सम्पत्ति और आमद लिखी रहती थी। लगान भी लिखा रहता था । गोप इस लगान को तहसील केन्द्र के अध्यक्ष के पास भेज देता था। इस प्रकार वह राजकोष तक पहुँचता था। गाँवो की तरह नगर में भी एक कर्मचारी होता था,जो नागरिक कहाता था । नगरों की प्रधान प्राय जकात या
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