पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१८९

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बुद और बौद्ध-धर्म २०२ । चंगी से होती थी। बाहर से आये माल पर. २० प्रतिशत चुंगी लगती थी। जो वस्तु जहाँ वनती थी, वहीं विकती थी। बाहर की वस्तुएँ नगर के बाहर नहीं बिक सकती थीं। फाटक से घुसते ही बाजार शुरू होता था। वहीं सब चीजें विकती थीं। विके माल पर चुंगी लगती थी। शव, अन्न, पशु और सवारियों पर चुंगी नहीं लगती थी। इसलिए ये नगर के बाहर भी विक सकते थे। धर्म के लिए, राजा की भेंट के लिए, विवाह-कार्य या गर्भवती के लिए जो चीज़ जाती थी, उसपर चुंगी नहीं लगती थी। खास अवसरों पर राज्य कर्ज लेता था। शराबखाने और जुआ-घरों से भी आय थी। नागरिक-शासन पाटलीपुत्र के नागरिक शासन (म्यूनिसेपल एडमिनिस्ट्रेशन) का विस्तृत वर्णन मिलता है । तीस सदस्यों की सभा नगर का शासन करती थी, जो ५-५ सभ्यों की ६ उपसभाओं में विभक्त थी। पहली उपसभा मजदूरों और श्रमजीवियों का काम देखती थी। वाजार की वस्तु शुद्ध और भाव ठीक है, यह देखना भी इसी का काम था । दूसरी उपसभा विदेशियों का निरीक्षण करती थी, जो विदेशी नगर में आता उसपर कड़ी ष्टि रखती थी। वह कहाँ से आया, क्यों आया, कहाँ जाता है, क्यों जाता है, ये सब वातें ध्यान से देखी जाती थीं। यदि कोई विदेशी मर जाता, तो उसकी सम्पत्ति एकत्र करके उसके उत्तराधिकारियों को भेज दी जाती थी। तीसरी सभा जनता की मृत्यु-उत्पत्ति का खाता रखती थी। चौथी ,