पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२०२

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२१५ बौद्ध काल का सामाजिक जीवन - जो शाक्यों के प्रजातन्त्र में लिया जाता रहा होगा। उस स्तम्भ में 'लुम्बनी ग्राम समिन्देई का कर माफ करने का उल्लेख है । इसके सिवा कहीं कोई ऐसा प्रमाण नहीं नजर आता कि जिससे शाक्यों, लिच्छिवियों, मल्लों और कोलियों के प्रजातन्त्रों में किसी भी प्रकार का कर लिए जाने की शंका उत्पन्न हो। जातकों से पता लगता है कि प्रत्येक ग्राम में ३० से लेकर १०० कुटुम्ब तक रहते थे । ये ग्राम कई प्रकार के होते थे, जैसे- 'जानयत' जो नगरों के निकट हुआ करते थे। 'प्रात्यन्त' (पच्यन्त) जो सीमाओं पर होते थे। गावों के चारों ओर खेत, जंगल चराह- गाहें होते थे। लोग चराहगाहों में मुफ्त पशु चराते थे, मुफ्त लकड़ियाँ काट लाते थे । खेतों के कटने पर पशु उनमें चरने को छोड़ दिए जाते थे । खेतों को बोने का समय नियत था ।ग्राम्य- पंचायतें सींचने के कुए या नहरों की व्यवस्थाएँ किया करती थीं। मुखिया की देख-रेख में पानी यथा नियम सभी को बाँटा जाता था। गाँव के कुल खेत एक घेरे में रहते थे। खेत प्रायः कुटुम्बों की गिनती से बरावर बँटे रहते थे, और फसल भी प्रायः बराबर बँटा करती थी। कोई किसान बिना मुखिया की आज्ञा न अपना खेत वेच सकता और न गिरवी रख सकता था। पिता के मरने पर बड़ा पुन कुटुम्ब का स्वामी बनता था। यदि कुटुम्ब की सम्पत्ति बटती थी, तो सब भाइयों को खेत भी चॅट जाते थे। स्त्रियों के आभूपण और वख उनकी निजू सम्पत्ति गिने जाते थे। लड़कियाँ माता की सम्पत्ति की अधिकारिणी रहतीं पर खेत में भागीदार