बुद्ध और बौद्ध-धर्म सूत्रों में मिलता है । गौतम की अन्तिम अवस्था के समय जबकि उसकी युवावस्था के सब साथी और शिष्य मर चुके थे, यह गूढ महात्मा, उनके पुत्र और, पौत्रों को उन्हीं पवित्र नियमों का उपदेश देता रहा, जिनका उपदेश वह उनके पिताओं और दादों को दिया करता था। यद्यपि उसके बहुत से पुराने साथी और शिष्य मर चुके थे, फिर भी उसका सबसे निकटस्थ शिष्य आनन्द छाया सदृश उसका अनुकरण करता हुआ, साथ ही था । राजगृह के वृद्ध सम्रांद्र बिम्बसार अब न थे। उनका लोभी और दुष्ट पुत्र अजातशत्रु मगध की गद्दी पर था । यद्यपि अजातशत्रु गौतम का भक्त और शिष्य न था; किन्तु वह इतने बड़े महात्मा का कुछ नुकसान भी न कर सकता था, अतः वह बुद्ध का ऊपर से तो सत्कार करता था । अजातशत्रु जब मगध का सम्राट्र बना, तो मगध में गंगा के उत्तरी किनारे पर मैदान में, जो प्रबल विज्जयन जाति रहती थी उसकी तरफ उसका ध्यान गया और उसने उन्हें नष्ट करने का निश्चय किया । इस समय गौतम गृध्रकूट पर रहता था जोकि उन ५ पहाड़ियों में सबसे बड़ी श्री। अजातशत्रु ने अपने मन्त्री सुनीत को गौतम के पास यह पूछने को भेजा कि यदि विजयनों पर आक्रमण किया जाय तो उसका क्या परिणाम होगा। गौतम राजाओं का सत्कार करने वाला और खुशामदी आदमी न था। उसने कहा-जबतक विजयन लोग परस्पर सुसंगठित रहेंगे तब- तक उनका पतन नहीं होगा।
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