महान् बुद्ध उस समय जबकि गौतम गृध्रकूट के निकट रहता था, वह पाटलीपुत्र और अम्बलतिका आदि ग्रामों में भ्रमण किया करता था। पाटलीग्राम उस समय एक छोटा-सा ग्राम था लेकिन मगध का प्रधान मन्त्री सुनीत विजयनों का मुकाबला करने के लिए वहाँ एक किला बना रहा था। उस किले के निर्माण के बाद ही इस नगर की बड़ी उन्नति हुई और इसके बाद प्रसिद्ध मौर्य सम्राट्र चन्द्रगुप्त ने इसे अपनी राजधानी बनाया । अब भी वह भारतवर्ष के सबसे बड़े नगरों में गिना जाता है । गौतम ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह नगर आगे चलकर बहुत प्रसिद्ध होगा। उसने आनन्द से कहा था-हे अानन्द ! यह नगर सब प्रकार के धंधों, शिल्प और वाणिज्य-व्यापार का केन्द्र होगा। एक बार अजातशत्रु ने गौतम को भोजन का निमन्त्रण देकर उसे मीठी रोटियाँ खिलाई थीं। वहाँ से वह कोटिग्राम और कोटिग्राम से नादिक को गया और वहाँ एक ईंटों की सराय में ठहरा जोकि यात्रियों के ठहरने के लिए बनाई गई थी। वहाँ पर उसने आनन्द को वह सारगर्मित उपदेश दिया कि जिसके द्वारा प्रत्येक शिष्य जान सकता है कि उसने निर्वाण प्राप्त किया है या नहीं। उस ज्ञान का अभिप्राय यह था-यदि वह मन में यह निश्चय कर ले कि उसे बुद्ध में विश्वास है, संघ में विश्वास है और धर्म में विश्वास है, तो उसकी मुक्ति हो गई। बुद्ध, धर्म और संघ ये बुद्ध-धर्म के तीन मुख्य सिद्धान्त हैं। नादिक से गौतम वैशाली गया, जो गङ्गा के उत्तरी किनारे,
पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२२
दिखावट