बुद्ध और बौद्ध-धर्म २४६ काथ उसका साथ दिया, और निरन्तर २२ दिन की यात्रा के उपरान्त वह लोग चीन के दक्षिणी किनारे पर पहुंच गये। दूसरा चीनी यात्री हुएनत्संग फाहियान से लगधग २०० वर्ष बाद ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में फर्गन, समरकन्द, बुखारा और बलख होता हुधा भारतवर्ष आया था। यह बहुत वर्षों तक भारतवर्ष में रहा । वह सन् ६२६ ई० में चीन से चला और ६४५ ई० में वापिस चीन पहुंचा था। उसके वर्णन सातवीं शताब्दी के भारतवर्ष के सामाजिक जीवन पर अच्छा प्रकाश डालते हैं। वह लिखता है- "जलालावाद की प्राचीन राजधानी नगरहार घेरे में चार मील थी। यहाँ के लोगोंका चाल-व्यवहार सादा और सच्चा था। उनके स्वभाव उत्साह-पूर्ण और वीरोचित थे। यहां बौद्ध-धर्म का बड़ा प्रचार था, परन्तु यहाँ हिन्दु धर्मावलम्बी भी रहते थे। उनके पाँच शिवालय और लगभग १०० पूजा करने वाले लोग थे। नगर के पूर्व की ओर अशोक का बनाया हुआ ३०० फीट ऊँचा स्तूप था, जोकि बहुत ही सुन्दर कामदार पत्थरों और अद्भुत रीति से बनाया गया था। यहाँ बहुत से संघाराम थे। नगर के दक्षिण- पश्चिम में चार मील पर एक संघाराम था। जिसमें ऊंची दीवार और ढेर किए हुये पत्थरों का कई खण्ड का एक बुर्ज और २०० फीट ऊँचा एक स्तूप था। गान्धार राज्य की रानधानी पेशावर थी। नगरहार तथा गान्धार दोनों ही उस समय हिन्दुकुश के निकट के राजा के आधीन थे और उसी के नायक इन देशों में
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