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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२४८

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2 दो अमर चीनी बौद्ध भिक्षु इसके बाद हुएनत्संग सम्राट् बिम्बसार और अजातशत्रु के समय की मगध की राजधानी राजगृह में आया, जो अब धीरे- धीरे खण्डहर हो रहा था और आबादी बिल्कुल कम हो गई थी। उसने वहाँ उस स्थान को देखा, जहाँ पहिली, सभा काश्यप के सभापतित्व में हुई थी। काश्यप ने उस समय कहा था-"आनंद जो निरन्तर तथागत के शब्दों को वरावर सुनता था, सूत्रपिटकों को संग्रहीत करें। और मैं ( काश्यप ) धर्मपिटकों को संग्रहीत करूँगा।वर्षा-ऋतु के तीन मास व्यतीत होने पर त्रिपिटक का संग्रह समाप्त होगया.। फिर हुएनत्संग नालन्द के महाविद्यालय में आया, जहाँ कई हजार सन्यासी विदाध्ययन करते थे। उनके विषय में वह लिखता है-"वं लोग बड़े ही योग्य और बुद्धिमान मनुष्य थे । भारतवर्ष के सब देश उनका सत्कार करते और उनके आदेशानुसार, चलते हैं। गूढ विषयों पर प्रभोत्तर करने के दिन काफी नहीं हैं, अतः प्रातःकाल से लेकर रात्रि तक वे लोग शास्त्रार्थ में लगे रहते हैं। वृद्ध और युवा परस्पर एक-दूसरे को सहायता देते हैं। जो लोग त्रिपिटक के प्रश्नों पर शास्त्रार्थ नहीं कर सकते, उनका सत्कार नहीं होता और बेलज्जा के मारे अपना मुँह छिपाने को विवश होते हैं। इसलिए भिन्न-भिन्न देशों से विद्वानों के. झुण्ड-के-मुण्ड अपनी शङ्का-समाधान के लिये यहाँ आते हैं और, जो शीघ्रता से शास्त्रार्थ में प्रसिद्धि पाना चाहते हैं। बहुत-से मनुष्य अपने को झूठ-मूठ नालन्द के विद्यार्थी बताकर इधर-उधर जाकरशसिद्धि पाते हैं।"