पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२७५

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बुद्ध और बौद्ध धर्म २८ विहार की स्थापना अवश्य हुई होगी। हुपनत्संग के कथन में जिसका समर्थन लामा तारानाथ भी करते हैं, तब तक बिल्कुल अविश्वास करना अनुचित है, जब तक खुदाई समाप्त न हो जाय, मेरा विश्वास है कि "नानन्द” नामक गाँव में अब यदि खुदाई का काम जारी किया जाय, तो बहुत सम्भव है कि नालन्दा की प्राची- नता के और अधिक प्रमाण मिलें। महाविहार के संस्थापक और संरक्षक नालन्दा के प्रथम संघाराम के बनाने वाले राजा शक्रादित्य थे। हुएनत्संग के मत के अनुसार इनका समय ईसवी सन् की शताब्दि प्रथम में होना चाहिये । पर यह मत अन्य विद्वानों को मान्य नहीं है। शक्रादित्य के पुत्र और उत्तराधिकारी बुद्धगुप्त राज ने प्रथम संघाराम के दक्षिण में, एक दूसरा संधाराम बनवाया। तीसरे राजा तथागत गुप्त ने दूसरे के पूर्व में एक तीसरा संघाराम बन- वाया। इसके उत्तर-पूर्व में बालादित्य ने एक चौथा संघाराम वन- वाया। उनके पुत्र यत्र ने अपने पिता के बनवाये हुए संघाराम के पश्चिम में एक और संघाराम बनवाया । अन्त में फिर उनके संघा- राम के उत्तर में मध्य भारत के किसी एक राजा ने एक और संघाराम बनवा दिया। और इन सभी संघारामों को एक ऊँची चहार दीवारी से घिरवा भी दिया। इसके बाद भी अनेक राजा सुन्दर तथा भव्य निर्माण से, नालन्दा को सुशोभित करते रहे। रेवरेण्ड हिरास ने एक विद्वत्तापूर्ण लेख में उक्त चारों राजाओं के