पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बुद्ध और बौद्ध-धर्म २६६ स्थान का नामकरण हम ऊपर लिख चुके हैं कि आरंभ से ही नालन्दा को देश के विद्यानुरागी राजा महाराजाओं से यह अपरिमित सहायता मिलती रही। सम्भव है कि इसी कारण इस स्थानका नाम 'नालंदा' (अनन्तदान) पड़ गया हो । पर इस बात के सम्बन्ध में हुएनत्संग ने बड़ी दिलचस्प बातें लिखी हैं-जन श्रुति यह थी कि संघाराम के दक्षिण में आम्रवाटिका के बीच एक तालाब था। इसके निवासी नाग का नाम नालन्दा था और उसी से इस स्थान का यह नाम पड़ गया । किन्तु हुएनत्संग यह मत स्वीकार नहीं करता । प्राचीन काल में तथागत भगवान जब बोधिसत्व का जीवन व्यतीत कर रहे थे तब एक बार एक बड़े देश के राजा हुए, और इसी स्थान ."को अपनी राजधानी बनाई । करुणा से आर्द्र होकर वे निरन्तर यहाँ के जीवों के दुख दूर करने में तल्लीन रहते थे। इसकी स्मृति में वे 'अनन्त उदारता के अवतार'-अथवा "न-अल-दाग (अप्रतिम- दानी) कहे जाने लगे, और संघाराम का यह नामकरण उसी.स्मृति की रक्षा के लिये हुआ। हुएनत्संग "जातक कथा के आधार पर नालन्दा नाम की यही व्युत्पत्ति मानता है । किन्तु इत्सिंग उपर्युक्त जनश्रुति वाली ही बात को सच बताता है । हाल में पं० हीरानन्द शास्त्री ने एक और मनोरंजक सिद्धान्त पेश किया है- 'वे नालन्दा की व्युत्पत्ति "नल" अर्थात कमल के फूलों से वतलाते हैं । कमल के फूल आज भी नालन्दा में प्रचुरता से पाये