२६ बुद्ध के धार्मिक और दार्शनिक सिद्धान्त बैल, सात सौ बछड़े, सात सौ बछड़ियाँ, सात सौ वकरे और सात सौ भेड़ें छोड़ी। मैंने इनको जीवन-दान दिया । ये सब हरि- द्वर्ण तृण का भक्षण करें, और ठंडा पानी पीवें, ठंडी हवा से इनके शरीर शीतल हों। बुद्ध ने विविध यज्ञों की बात कहकर अंत में शील, समाधि, प्रज्ञा,यज्ञ की बात कही है । शील से समाधि और समाधि से श्रद्धा का लाभ होता है। इस प्रकार प्रज्या-यज्ञ ही उनके मत में सर्व- श्रेष्ठ यज्ञ हे। ६-अनीश्वरवाद । बौद्ध-धर्म अनीश्वरवादी है, परंतु बौद्ध-सिद्धांतों में कहीं ईश्वर के विरोध में उत्कृष्ट शास्त्रार्थ नहीं मिलता | बुद्ध के अनीश्वरवाद का केवल यही अर्थ है कि ईश्वरोपासना न करके भी मुक्ति मिल सकती है। वास्तव में यदि देखा जाय, तो यह सांख्य के अभिप्राय से मिलता-जुलता मत है। ७-कर्मवाद । कर्मवाद बौद्ध-धर्म में एक विशिष्ट स्थान रखता है। वह इस प्रकार है- "कम्मसस कोहि कम्मदायादो कम्मयोनि कम्म- वन्धु कम्मपरिसरएने यं कम्म करिस्सामि कल्याणं वा पापकं वा तस्स दायादौ भविष्यामि ।" ग्रह वाक्य अंगुत्तरनिकाय और नेत्तियकरण आदि कई
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