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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/३९

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म जाति के सम्बन्ध में बुद्ध के विचार सबके लिए समान हैं। वह ब्राह्मण का सत्कार एक चौद्ध-भिनु की भांति करता है, लेकिन गुण और विद्या के लिए, उसकी जन्मजात जाति के लिए नहीं। वह जाति को मानने से इन्कार करता है । एक बार दोब्राह्मण वशिष्ठ और भारद्वाज इस बात पर विवाद करने लगे--कोई ब्राह्मण किस बात से होता है। और वे इस बात के निर्णय के लिए गौतम के पास आए । गौतम ने उन्हें बतलाया कि जाति-भेद कोई वस्तु नहीं है। मनुष्य के गुण उसके कार्य से हैं, जाति से नहीं। उसने बतलाया कि मछलियाँ, चीटियाँ, चौपाये, साँप, घोड़े, कीड़े-मकोड़े, चिड़िये इन सबमें भेद है और वह अपने-अपने गुणों द्वारा जाने जाते हैं। मनुष्य का भी एक गुण है और वह उसका कार्य है। उस समय उन दोनों ब्राह्मणों को जो उपदेश बुद्ध ने दिये हैं, वह बौद्ध-ग्रन्थों में बड़ी सुन्दरता से इस प्रकार लिखे हुए हैं:- "क्योंकि हे वशिष्ठ ! जो मनुष्य गाय रखकर जीवन निर्वाह करता है, वह किसान कहलाता है, ब्राह्मण नहीं । "जो मनुष्य शिल्प-कार्य करके जीवन निर्वाह करता है, वह शिल्पकार कहलाता है, ब्राह्मण नहीं "और जो मनुष्य वाणिज्य के द्वारा जीवन निर्वाह करता है, वह वणिक कहलाता है, ब्राह्मण नहीं । "जो मनुष्य दूसरे की सेवा करके जीवन निर्वाह करता है, वह सेवक है, ब्राह्मण नहीं