पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/४०

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३७ बुद्ध के धार्मिक और दार्शनिक सिद्धान्त "जो मनुष्य चोरो करके जीवन निर्वाह करता है, वह चोर है, ब्राह्मण नहीं । "जो मनुष्य धनुर्विद्या से जीवन निर्वाह करता है, वह सिपाही है, ब्राह्मण नहीं॥ "जो मनुष्य गृहस्थी के विधानों को करके जीवन निर्वाह करते हैं, वे गृहस्थ हैं, ब्राह्मण नहीं। ममिझमनिकाय के अस्सलायन सुत्त में लिखा है एक विद्वान् ब्राह्मण अस्सलायन गौतम से विवाद करने आया, और वह गौतम के इस सिद्धान्त पर विवाद करने लगा कि सब जातियाँ समान रूप से पवित्र हैं। गौतम जोकि एक उत्तम तार्किक था, उसने उससे पूछा कि ब्राह्मणों की खियों को दूसरी जाति की खियों के समान प्रसव-वेदना होती है कि नहीं? अस्सलायन ने कहा-"हाँ, होती है।" गौतम ने पूछा-"क्या वेक्ट्रिया की भाँति आस-पास के देश के लोगों में रंग-भेद नहीं होता । फिर भी उन देशों में क्या गुलाम मालिक नहीं हो सकते और मालिक गुलाम नहीं हो सकते ?" अस्सलायन ने उत्तर दिया-"हाँ, हो सकते हैं।" गौतम ने पूछा-"तब यदि ब्राह्मण घातक, चोर, भूठा, लम्पट, कलक लगाने वाला, तुच्छ, लालची, द्रोही और मिथ्या सिद्धांत का मानने वाला हो, तो क्या वह मरकर दूसरी जाति की तरह दुःख और कष्ट में जन्म नहीं लेगा?"