पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बुद्ध और बौद्ध-धर्म . को पवित्र बना सकता है। जबतक कि वह अपनी कामनाओं क जीत नहीं लेता है। और जो पवित्र और शान्त जीवन आत्म-निरोध से पैदा होता है, उसीको बौद्ध लोग निर्वाण मानते हैं, और वह इसी संसार में पैदा हो सकता है। इन तमाम बातों से सिद्ध होता है कि बौद्ध-धम परलोक के लिए कोई उज्वल पुरस्कार नहीं देता । भलाई ही उसका पुरस्कार है। पुण्यमय जीवन ही बौद्धों का अन्तिम उद्देश्य है । इस पृथ्वी पर पुण्यमय शान्ति ही बौद्धों का स्वर्ग और निर्वाण है। अब देखना यह है कि गौतम ने हिन्दुओं के पुनर्जन्म के सिद्धान्त को परिवर्तित करके किस लिए ग्रहण किया है। यदि इस जीवन में निर्वाण की प्राप्ति न हो तो इस जीवन के त्याग और कर्मों का उचित फल दूसरे जन्मों में नहीं मिलेगा, इसलिए जबतक शिक्षा पूर्ण न हो जायगी तबतक निर्वाण नहीं हो सकता । जब शिक्षा पूर्ण हो जायगी तो निर्वाण मिल जायगा। ऋग्वेद में जिन ब्रह्म इत्यादि देवताओं का वर्णन किया गया है, उन्हें बुद्ध ने स्वीकार किया है, यह तो हम पहले ही बता चुके हैं। वह बतलाता है-सब प्राणी भिन्न-भिन्न मंडलों में बार-बार जन्म लेकर उस निर्वाण को प्राप्त करने का यत्न करते हैं जो सबके लिए मुख्य उद्देश्य है। . किन्तु इतना होने पर भी गौतम ने हिन्दु-धर्म के बहुत से सिद्धान्तों को और रीतियों को नहीं माना । उसने जाति-भेद को बिल्कुल निकाल दिया, तपस्याओं को वह निजूल कहता है, वैदिक ,