पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/५

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बद्ध और बौद्ध धर्म
 

सन्धियों के आधार पर था। शाक्यों की राजधानी "कपिलवस्तु"

थी, और जिस समय का हम उल्लेख कर रहे हैं, उस समय शाक्यों की गद्दी पर महाराज शुद्धोधन थे । मगध की गद्दी पर विश्व-विख्यात सम्राट बिम्बसार थे और कौशलों की गद्दी पर महाराज प्रसेनजित थे । शाक्यों और कोली सर्दारों का परस्पर खूब मेल-जोल और सम्बन्ध था। महाराज शुद्धोधन ने कोली महाराज की दो कन्याओं को व्याहा था।

विवाह के बहुत समय बाद इन दोनों में से बड़ी बहन के गर्भ रहा । प्रसव से कुछ समय पहिले उस समय की रीत्यानुसार वह राजकन्या पिता के घर प्रसव करानं को भेज दी गई, लेकिन मार्ग में ही लुम्बिनी नामक बनमें उसके पुत्र पैदा हुआ।पुत्र-सहित रानी पिता के घर पहुंची और सातवें दिन मर गई। फलतः छोटी बहन ने उस बच्चे को पाला। यही बच्चा भविष्य में महान् बुद्ध होकर प्रसिद्ध हुआ।

उसका नाम सिद्धार्थ रक्खा गया; लेकिन उसकी राशि का नाम गौतम था। शाक्यों का उत्तराधिकारी होने के कारण उसे शाक्य सिंह भी कहा जाता था। अंत में उसने महान् ज्ञान प्राप्त किया और अपने को बुद्ध कहकर प्रसिद्ध किया । १८ वर्ष की अवस्था में उसने यशोधरा को स्वयंवर रीति से वरा, जो उसके माता ही के घराने की कन्या थी। इस परम सुन्दरी राजकुमारी के साथ १० वर्ष तक वह सब प्रकार के लौकिक सुख भोगता रहा। अन्त में पुत्र उत्पन्न होने के दिन ही उसने गृहत्याग किया और