बौद्ध-संघ बुद्ध ने जब अपने धर्म का स्वरूप ठीक-ठीक संगठित देखा और उसे यह ज्ञात होगया कि देश के सार्वजनिक जीवन में उसका आदर हुआ है, तो उसने अपने धर्म को देश-देशान्तरों में फैलाने के लिए एक बौद्ध-संघ स्थापित किया । बौद्धों का यह संघ संसार के धार्मिक इतिहासों में सबसे अधिक प्रतिष्ठा का पात्र और सब संघों से श्रेष्ठ है। आजतक इसके बराबर का संघ नहीं हुआ । यद्यपि पहले अनेकों ऋषि, मुनि, साधु, सन्यासी, महात्मा थे और उनके बड़े-बड़े संघ थे; परन्तु बौद्ध के मुकाबले का एक भी न हुआ; दूसरे साधु, ऋषि, मुनि सदैव अपनी आत्मा का कल्याण करने में ही तत्पर रहते थे पर बौद्ध-संघ में यही विशे- षता थी, जिससे कि आज वह अपने आदर्शों की छाप विश्व-भर के धार्मिक संघों पर डाल रहा है । अपनी आत्मा के कल्याण के साथ-ही-साथ. संसार के कीचड़ में फंसे हुए मनुष्यों को भी सदुपदेश सुनाकर अपने पथ पर लाना उसका मुख्य उद्देश्य था। मितु-संघ के लिए जो नियम बुद्ध ने बनायेथेवे वास्तव में प्राचीन हिन्दु-शास्त्रों के वे ही नियम थे, जोकि ब्रह्मचारियों और सन्यासियों 1
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