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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/७

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बुद्ध और बौद्ध धर्म
 

गौतम नगर को लौटा । वहाँ चारों ओर से उसपर बधाइयों की

बौछार हुई । युवती स्त्रियाँ कह रही थी कि ऐसे सुकुमार पुत्र से इसके माता-पिता धन्य हुए । एक युवती ने उससे कहा- यह तुम्हारा सबसे बड़ा सुख है । गौतम ने समझा कि यह पाप और पुनर्जन्म से मुक्ति पाने का संकेत है। और उसने अपना मोतियों का हार उतार कर उस युवती को दे दिया।

उसी रात्रि को गौतम ने अपनी पत्नी के शयनागार में जाकर देखा-सुगन्धित दीपकों से कमरा जगमगा रहा है। उसकी पत्नी चारों ओर फूलों से घिरी हुई सुख-निद्रा में सो रही है, उसका एक हाथ बच्चे के सुकोमल चेहरे पर है। यह बड़े सुख और आनन्द का दृश्य था । उसके मन में यह इच्छा हुई कि इन तमाम इहलौकिक सुखों को छोड़ने से पहले, वह एक बार अपने बच्चे को गोद में उठाकर प्यार करे; पर वह एकदम रुक गया, कदाचित् बच्चे की माँ जग उठे और उसकी प्रार्थनाएं उसके हृदय को हिला दें और उसके संकल्प में बाधा पड़े। ऐसा विचार कर वह चुपचाप घर से बाहर निकल गया । एक ही क्षण में इस अन्धकार के अन्दर उसने अपने अधिकार, सुख, अपनी उच्च मर्यादा, राजकुमार के पद् को, अपने सुखद स्नेह की भावना को, युवती पत्नो, और उसकी गोद में उस सोये हुए सुकोमल बच्चे के प्रति प्रगाढ़ प्रेम को त्याग दिया। वह महान त्यागी बनकर एक निर्धन विद्यार्थी और गृहहीन पथिक की भाँति निकल पड़ा। उसका स्वामी-भक्त नौकर चन्न उसके साथ था । उसने हमेशा साथ रहने का बहुत आग्रह