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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/७६

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बुद्ध-संघ के भेद जो वस्तु अपनी इन्द्रियों को रुकावट दे वह "रूपधर्मग कहलाता है, रूपधर्म को हम प्रकृति कहते हैं। और अग्रेजी में इसे मैटर कहते हैं। रुपधर्म ११ हैं- इन्द्रियाँ, ५ इन्द्रियों के विपय और ११वाँ अविज्ञप्ति | यह अभिव्यक्ति वह रूप है जो अभी अभिव्यक्त न हुआ हो, अर्थात् जो स्पष्ट नहीं हुआ हो हिन्दु-शास्त्र में ५ इन्द्रियाँ, ५ उनके विषय और ११ वाँ मन माना गया है । ज्ञात होता है कि ११वाँ मन ही बौद्ध-दर्शन में अविज्ञप्ति रूप से ग्रहण किया गया है । यं ग्यारहों धर्म परमाणुओं से बने हुए हैं । परमाणु रूप का छोटे-से-छोटा भाग है। न हम उसे उठा सकते हैं, न चीर सकते हैं, न फेंक सकते हैं,न छू सकते हैं, न देख सकते हैं, न खींच सकते हैं, न लम्या बना सकते हैं। यह न नींचा है न ऊंचा है, न टेढा है न गोल है,न छोटा है न लम्बा, न चौकोर है न गोल है। किसी भी इन्द्रिय के द्वारा वह देखा नहीं जा सकता। रूप नित्य है । परमाणु भूत और भविष्यकाल में रहता है। वर्त- मानकाल में नहीं रहता । परमाणु अदृश्य है, पर जब वह दूसरे परमाणुओं के साथ मिलता है, तब देखा जा सकता है, इसे अणु कहते हैं । संसार की वस्तुएं इस क्रम से बनी हैं। ७ परमाणु-१ अणु ७ अणु =१ लोहरजः ७ लोहरजः-१ अब्रजः ७ अत्रजः -१शशरजः ७ शशरजः-१ अविरजः