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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/८१

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म ८ अनियत भूमिका धर्म ये भी बुरे ही विचारों के साथ पैदा जो कोई इन सबको ठीक-ठीक जान लेता है, वह सर्वास्ति- वादियों के मत में निर्वाण-पद का अधिकारी है। बौद्धों की इसी सम्प्रदाय का एक मुख्य सिद्धान्त अष्टांग मार्ग है। वे अष्टांग मार्ग ये हैं- (१) सम्यग् दृष्टि-संसार में दुःख है ? दुःख कैसे उत्पन्न हुआ ? दुःख कैसे बन्द हो ? इन सब बातों को जानना सम्यक्- दृष्टि है। (२) सम्यक् संकल्प-संसार त्यागो, ईर्षा त्यागी, कैप त्यागो। यह सम्यग संकल्प है। (३) सम्यग् वचन-झूठ बोलना, दूसरे की निन्दा करना, चोरी करना { इनको त्यागना सम्यग् वचन है। (४) सम्यग कर्मना-हिंसा करना, बिना दिये ही किसी की वस्तु ले जाना, इन्द्रियों का अनुचित रूप से भोग करना, इनसे वचना ही सम्यग-कर्मना है। (५) सम्यगाजीव-अच्छी वृत्ति को करना और बुरी वृत्ति को छोड़ना ही सम्यगाजीव है। (६) सम्यग् व्यायाम-पाप की वृत्तियों को रोकना, अच्छी वृत्तियों को उदय करना और उनके अनुभव विस्तार करना, यह सम्यग् व्यायाम है।