पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७६ बौद्ध-संघ के भेद (७) सम्यग् स्मृति-शरीर को समझना,लोभ-मोह को छोड़ना, शान्ति और उत्साह के साथ जीवन को व्यतीत करना, यह सम्यग- स्मृति धर्म कहलाता है। () सम्यग् समाधि-एक दूसरी अवस्था के पीछे ध्यान की सारी अवस्थाओं को प्राप्त कर लेना, सम्यग् समाधि है । ध्यान की पहली अवस्था ही राग-द्वेप की घातक है। दूसरी अवस्था में बड़ा आनन्द आता है और यह आनन्द से प्राप्त होती है। तीसरी अवस्था में सुख की उदासीनता पैदा हो जाती है। चौथे में उदासी और सावधानता दोनों ही नष्ट हो जाते हैं। यही अष्टॉग मार्ग हैं। माध्यमिक सम्प्रदाय- बुद्धकी मृत्यु के ७०० वर्ष पश्चात् बौद्धों में एक बड़े भारी सिद्ध पुरुष हुए हैं-वे नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध थे। यह दक्षिणी भारत के ही रहनेवाले थे। और यह बुद्ध के पश्चात दूसरी या तीसरी शताव्दि में प्रकट हुए । माध्यमिक सम्प्रदाय के यह सबसे बड़े प्राचार्य थे। आचार्य आसुरीघोप जो मसीह की पहली शताब्दि में पैदा हुए, उन्होंने भारत में महायान संप्रदाय की नींव डाली और अनेकों ग्रन्थों को संचित करके उनको शुद्ध करवाया । उन्हीं आसुरीघोष के शिष्य श्रीनागार्जुन सिद्ध थे। नागार्जुन ने इस विषय पर एक ग्रन्थ लिखा है, जिसे द्वादश वाक्य शास्त्र कहते हैं। यह इस संप्रदाय का सबसे मुख्य ग्रन्थ है।