बुद्ध और बौद्ध-धर्म 58
न उनका आविर्भाव होता है न लोप । वह केवल भ्रम और प्रपञ्च है। माध्यमिक सम्प्रदाय का कहना है कि किसी वस्तु में अपना निजी स्त्रभाव नहीं है । गर्मी को भी अग्नि का स्वभाव नहीं कह सकते ; क्योंकि अग्नि और उष्णता बहुत-सी अवस्थाओं के संयोग का परिणाम है और जिसका होना बहुत-सी अवस्थाओं पर निर्भर है । किसी भी वस्तु का उसका निजी स्वभाव नहीं कहा जा सकता। इसलिए माध्यमिक सम्प्रदाय का यह कहना है कि स्वभाव का अस्तित्व नहीं है । यदि कोई वस्तु अपना स्वभाव या अस्तित्व नहीं रखती है तो हम उसमें दूसरी वस्तुओं का स्वभाव भी नहीं मान सकते । यदि कोई पहले तो वस्तुओं को भावात्मक माने और पीछे यह मालूम करे कि वह ऐसी नहीं है तो वह अभाव को माननेवाला हुआ; परन्तु जब हम किसी वस्तु को भावात्मक ही नहीं कहते, तव हम उसे अभावात्मक कैसे कह सकते हैं? लेकिन सबसे पहले यह बात है कि हम प्रत्येक पदार्थ में गति और प्रवृत्ति तो देखते ही हैं, तो इसका उत्तर यह है कि हम परि- वर्तन-क्रिया उन पदार्थों के विषय में नहीं कह सकते, जो क्षणिक अर्थात् अस्थायी वस्तुएं हैं, उनके विषय में हम परिवर्तन-क्रिया को लगा ही नहीं सकते ; क्योंकि उनके उत्पन्न होने के दूसरे ही क्षण बाद उनका नाश हो जाता है। कोई भी वस्तु ऐसी नहीं कि जो जारी रहे और जिसके लिए परिवर्तन गति के लगाने की ,