पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१०४

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बृहदारण्यकोपनिषद् स० कारण । देवानाम्देवताथों में। तथाप्रथया । ऋषीणाम् ऋपियों में । तथा मनुप्याणाम् अथवा मनुष्यों में । यःजो। या-जो। प्रत्यबुध्यत-ज्ञानवान् हुये। सः एवम्बही यही तत्- वह ब्रह्म । अभवत्-होते मगे । तत् ह-उसीही। पनतरस ब्रह्मज्ञान को । पश्यन्-जानता हुा । वामदेवः वामदेय । ऋपिः ऋपि ने । श्राह-कदा कि । अहम् "मैं ही। मनुः मनु । अभवम् होता भया। चार । + अहम् में दी। सूर्यः सूर्य । + अभवम् होता भया" । इति-ऐमे। प्रतिपदेसान को यह प्राप्त हुधा । तत्-तिसी कारण । यःमो। पतनियम अपि=भी । तत्-उस । इदम्म प्रसिद्ध ज्ञान को । वेदः जानता है । सामवह भी । इति-सा । श्राहकहना है कि अहम्= मैं । ब्रह्म-ग्रह । अस्मि-हू | + चौर। स वही । इदम् यह । सर्वम्-सय रूप । भवति-मोना है । तर उस ब्रह्मवेत्ता के । अभूत्यै-प्रकल्याणार्थ । + कश्चित्-ई भी। देवाः देवता । न ह न कभी नहीं। ईश-समर्थ में हैं। हि-क्योंकि । सःबह ज्ञानी । एपाम्-उन देवनापों।। आत्मा यात्मा । भवति होता है। ग्रथोर । असी. । अन्यः=ौर है ।+ अहम् मैं । अन्यः अस्मि-पौर हति- इस प्रकार | + ज्ञात्या-नान करके । यःो । अन्याम् देवताम्-देवनाओं की । उपास्ते-उपासना करता है। -चा। न-नहीं । वेद जानता है कि । सायद ज्ञानी एव%3 निश्चय करके । देवानाम् पशु:-देवताओं का पशु है यथा- जैसे । बहवःबहुत । पशवः पशु । ह वैनिश करके । मनुष्यम्-मनुष्य को । भुयुः पोपण करते हैं। तम्उमी प्रकार । एकैकाएक एक । पुरुषः प्रज्ञानी पुरुष देवान् = देवताओं की । भुनक्लि-पोपण करता है। एकस्मिएव पशो