पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१५३

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अध्याय.१ ब्राह्मण ५ . . कर्म का वर्णन । + कथ्यते-किया जाता है । यदा अब । + पिता-पिता । प्रेष्यन्-मरनेवाला । मन्यते-अपने को सम- झता है । अथव । + सा वह । पुत्रम्-पुत्र से । आह- कहता है कि । त्वम्-तू । ब्रह्म-वेद है। त्वम्-तू । यज्ञायज्ञ है। त्वम्-तू । लोकालोक है । इति इस प्रकार । + श्रुत्वा सुन कर । सः वह । पुत्र:=पुत्र । प्रत्याह-जवाब देता है कि । अहम्-मैं । ब्रह्मम्वेद हूँ। अहम् मैं । यशः यज्ञ हूँ। अहम्= मैं । लोकः इति लोक हूँ तव । + पिता पुनः वदति-पिता फिर कहता है कि । यत्-जो । किंच वै-कुछ मुझ करके । अनू- लम्-पढ़ा गया है अथवा नहीं पढ़ा गया है । तस्य-उस । सर्वस्य-सबकी । एकता-एकता । ब्रह्म इतिम्वेद के साथ है। +च-और । ये वै केमो कोई । यज्ञाः यज्ञ मुझ करके किये गये हैं अथवा नहीं किये गये हैं । तेषाम्-उन । सर्वेपाम्-सबकी। एकता-एकता । यज्ञः इति-यज्ञ के साथ है । चौर । ये वै के जो कोई । लोकालोक मुझ करके जीते गये हैं अथवा नहीं जीते गये हैं । तेषाम् उन । सर्वेपाम्-सबकी । एकता- एकता । लोकः इति-लोकपद के साथ है ।+ पुत्र हे पुत्र ! एतावत् वै-इतना ही । इदम्यहं । सर्वम् सब है यानी इन तीन कर्मों से अधिक और कोई कर्म नहीं है । एतत्-इस । सर्वम्सव भार को ।+ अपच्छिद्यम्मुझसे अलग करके और अपने ऊपर रख करके ।+ मम=मेरा । सन्-विद्वान् । अयम्-यह पुत्र । इत: इस लोक से । मा-मुझको। अभुनजत् इति-अच्छी तरह पालेगा यानी सर्व बन्धनों से छुड़ा देगा । तस्मात्-इस कारण । 'अनुशिष्टम् सुशिक्षित । पुत्रम्-पुत्र को । लोकम्- पितृलोकहितकारी । + जना विद्वान् लोग । आहुः कहते हैं।+ च-और । तस्मात्-इसी कारण । एनम्-इस पुत्र को। ..