अध्याय २ ब्राह्मण २ - इदम्, एच, आधानम्, इदम्, प्रत्याधानम्, प्राणः, स्थूणा, अन्नम्, दाम ॥ अन्वय-पदार्थ। यःजो । हनिश्चय करके । साधानमाधान सहित । सप्रत्याधानम्-प्रत्याधान सहित । सस्थणम् स्थाणुसहित । सदामम्-दामसहित । शिशुम्बछवे को । वेद-जानता है + साम्वर । ह वै-अवश्य । सप्त सात । द्विपतः द्वेष करने- हारे । भ्रातृव्यान्-शत्रुओं को । अवरुणद्धि वश में कर लेता है +तेपु-तिन शत्रुत्रों के मध्य में । यःजो । अयम्-यह । मध्यमः बीच में रहनेवाला । प्राणः प्राण है । अयम्-चही । चाव-निस्संदेह । शिशु बछड़ा है । तस्य-उसका । प्राधा- नम्-अधिष्ठान यानी उसके रहने की जगह । इदम्-यह । एक- ही । + शरीरम्-स्थूल शरीर है । इदम्-यह । + शिर: शिर । + तस्य-उसके । प्रत्याधानम्-रहने की अनेक जगह यानी शिर में आँख, कान, नाक, मुख जो थनेक जगह हैं उनमें वह रहता । तस्य-उसका । स्थूणा खूटा । प्राणः अन्न से पैदा हुधा बल है । + तस्य-उसकी । दाम-रस्सी । अन्नम् अन्न यानी भोज्य पदार्थ है। भावार्थ । हे सौम्य ! इस मन्त्र में मुख्य प्राण को गाय के बछड़े के साथ उपमा दिया है, जैसे बछड़ा खूटे से बँधा हुआ घास आदि खाकर वली हो जाता है, वैसे ही विविध प्रकार के भोज- नादि करने से यह प्राण भी बली हो जाता है, हे सौम्य ! जिसमें कोई वस्तु रहे, उसको आधान कहते हैं, प्राण के रहने की जगह यह स्थूल शरीर है, इसलिये इस स्थूल १३
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२०९
दिखावट