अध्याय १. ब्राह्मण १ . और पक्ष है; क्योंकि दोनों में सादृश्यता है, इसके पैर दिन और रात हैं, क्योंकि जैसे शरीर के साथ पैर बढ़ता है वैसे ही दिन रात काल के भी बढ़ते हैं, उसकी हड्डियाँ नक्षत्र हैं, क्योंकि दोनों में श्वेत रंग के कारण सादृश्यता है, उसका आधा पचा हुआ अन्न ब.लू है, क्योंकि अन्न के दानों में और बालू के रेतों में सादृश्यता है, और उसके अतरी और नस नदी हैं, क्योंकि जैसे नदी में से जल निक- लता है वैसे ही अंतरी और नस में से रक्तादि निकलते हैं, उसका जिगर और फेफड़ा पर्वत हैं, क्योंकि जैसे पहाड़ लंबा और ऊँचा होता है वैसे ही फेफड़ा और जिगर फैला होता है, इस कारण दोनों में सादृश्यता है, उसके शरीर के रोम औपधी और वनस्पति हैं, क्योंकि इन दोनों में सादृश्यता है, उसका अगला भाग यानी गर्दन निकला हुआ सर्य है, क्योंकि जैसे घोड़े का गर्दन ऊपर उठा रहता है, वैसे ही सूर्य भी ऊपर को उठा रहता है, उसके पछि का भाग अस्त होनेवाला सूर्य है, जैसे पीछे का हिस्सा नीचे की तरफ़ मुसा रहता है वैसे सूर्य का रथ वाद दोपहर के पश्चिम के तरफ झुका रहता है, यह दोनों में सादृश्यता है, उसका जमहाई विद्युत् तुल्य है, क्योंकि विजुली की सादृश्यता मुख के साथ है, जब वह एकाएक खुल उठता है, और उसके शरीर का झाड़ना मानों बादल का गर्जना है, दोनों में शब्द की सादृश्यता है, उसका मूत्र करना वृष्टि का वर्पना है, क्योंकि दोनों एक ही प्रकार के छिड़काव करते हैं, यही दोनों की सादृश्यता है, उसका हिनहिनाना जो शब्द है इसमें आरोप किसी का नहीं है, ऐसा ध्यान करने से . . .
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