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पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२३५

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अध्याय २ ब्राह्मण ४ २१६ श्रात्मनःघपने यानी अर्थी की आत्मा की । कामाय-कामना के लिये । लोका-लोग । प्रिया-प्यारे । भवन्ति होते हैं। अरे हे नियमैत्रेयि! । देवानाम्देवों की । कामाय-कामना के लिये । देवाः देव । प्रिया-प्यारे । न भवन्ति-नहीं होते हैं । तु-किन्तु । वै-निश्चय करके । आत्मनः अपने यानी उपासक की पारमा की। कामाय-कामना के लिये । देवाः-देवता । प्रियाः-प्रिय । भवन्ति-होते हैं । अरे हे प्रियमैन्नेयि ! भूतानाम्-प्राणियों के । कामाय-कामना के लिये । भूतानि% प्राणी । प्रियाणि-प्यारे । न भवन्ति नहीं होते हैं । तु-किन्तु । वेनिश्चय करके । प्रात्मनःअपने यानी प्राणी की आत्मा की। कामाय-कामना के लिये । भूतानि-प्राणी । प्रियाणि प्यारे । भवन्ति होते हैं । अरे हे प्रियमैत्रेयि । सर्वस्य-सबकी । कामाय-कामना के लिये । सर्वम्-सव । प्रियम्-प्रिय । न भवति नहीं होना है। तु-किन्तु । आत्मन: अपने यानी सब लोगों की प्रात्मा की । कामाय-कामना के लिये । सर्वम् सब । प्रियम्-प्रिय । भवति होता है । अरे हे शियमैत्रेयि ! + तस्मात् इस लिये। श्रात्मा अपना पास्मा । द्रष्टव्यः दर्शन के योग्य है । श्रोतव्या यही गुरु और शास्त्र करके सुनने योग्य है । मन्तव्यःविचार करने योग्य है । निदिध्यासितव्यः निश्चय करने योग्य है। अरे मैत्रेयि हे प्रियमैत्रेयि ! अात्मनः मात्मा के । दर्शनेन-दर्शन से । श्रवणेन-सुनने से । मत्या समझने से । विज्ञानेन-जानने से । इदम्-यह । सर्वम्-सव । विदितम् जाना हुआ । वै-अवश्य ।+ भवति होता है। भावार्थ । हे सौम्य ! मैत्रेयी देवी ने अपने पति याज्ञवल्क्य महाराज से सविनय प्रार्थना किया कि जिस साधन करके आप अपने