. २२० बृहदारण्यकोपनिषद् स० आत्मा सम्बन्धी ज्ञानरूपी धन को अपने साथ लिये जाते ह उसमें मुझको संमिलित कीजिये, यह सुनकर याज्ञवल्क्य महाराज बड़े प्रसन्न हुये, और बोले हे प्रियमैत्रेयि ! पति की कामना के लिये पति भार्या को प्यारा नहीं होता है, किन्तु निज आत्मा की कामना के लिये भार्या को पति प्यारा होता है। हे प्रियमैत्रेयि ! जाया की कामना से जाया पति को प्यारी नहीं होती है, किन्तु पति के निज आत्मा की कामना के लिये जाया प्रिय होती है । हे प्रियमैत्रेयि ! पुत्रों की कामना के लिये पुत्र पिता को प्यारे नहीं होते हैं, किन्तु माता पिता की कामना के लिये लड़के लड़की प्यारे होते हैं । हे प्रियमैनेयि ! धनकी कामना के लिये धन धनी को प्यारा नहीं होता है, किन्तु धनी की निज प्रात्मा की कामना के लिये धन प्यारा होता है । हे प्रियमैत्रेयि ! ब्राह्मण की कामना के लिये ब्राह्मण यजमान को प्यारा नहीं होता है, किन्तु यजमान के आत्मा की कामना के लिये ब्राह्मण प्यारा होता है । हे प्रियमैत्रेयि ! क्षत्रिय की कामना के लिये क्षत्रिय स्वामी को प्यारा नहीं होता है, किन्तु पालनीय के आत्मा की कामना के लिये क्षत्रिय प्यारा होता है। हे प्रियमैत्रेयि ! लोगों की कामना के लिये लोग प्यारे नहीं होते हैं, किन्तु अर्थी की कामना के लिये लोग प्यारे होते हैं। हे प्रियमैत्रेयि ! देवों की कामना के लिये देव उपासकों को प्यारे नहीं होते हैं, किन्तु उपासक की कामना के लिये देवता उपासक को प्यारे होते हैं । हे प्रियमैत्रयि ! प्राणियों को कामना के लिये प्राणी को प्राणी प्यारे नहीं होते हैं, किन्तु प्राणी के आत्मा की कामना के लिये प्राणी प्यारे .
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