पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३०७

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अध्याय ३ ब्राह्मण २ प्रांर्तभाग । इति पप्रच्छ-ऐसा पूछतां भया कियाज्ञवल्क्य= है याज्ञवल्क्य.! । कति-कितने । ग्रहा: प्रहं हैं ?च और। कति-कितने । अंतिग्रहा:-प्रतिग्रह है ? | इति-इस पर । ह% साफ़ साफ । याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने । उवाचकहा। श्रप्टो-पाठ । ग्रहाप्रद है. + च-औरः । अष्टो-पाठ । अतिग्रहा:-प्रतिग्रह । इति-ऐसा । श्रुत्वा-सुन कर । + पुनः प्रश्न:-फिर.प्रश्न किया कि । ये-मो। ते-वे । अष्टो-पाठ । ग्रहा=ग्रह हैं । + च-और । अटोमा। अतिग्रहा। अतिग्रह हैं । कतमे उनमें से कितने । ते वे ग्रह और कितने घतिग्रह हैं। भावार्थ। जब अश्वल चुप हो गया, उसके पीछे जरत्कारु के पुत्र आर्तभाग ने प्रश्न करना आरम्भ किया, यइ. कहता हुआ कि हे याज्ञवल्क्य ! ग्रह कितने हैं ? और अतिग्रह कितने हैं ? याज्ञवल्क्य उत्तर देते हैं कि आठ ग्रह हैं, और आठ ही अतिग्रह हैं, पुनः आर्तमांग पूछता है हे याज्ञवल्क्य ! ग्रह कौन कौन हैं, और आठ अतिग्रह कौन कौन हैं ॥ १ ॥ मन्त्र २ प्राणो वै ग्रहः सोपानेनातिग्राहेण गृहीतोपानेन हि गन्धाघ्रिति ।। पदच्छेदः। वै, प्रहः, सः, अपानेन, अतिप्रादेण, गृहीतः, अपानेन, हि, गन्धान् , जिघ्रति ।। अन्वय-पदार्थ । + याज्ञवल्क्यान्याज्ञवल्क्य ने । + श्राह-उत्तर दिया कि । प्राणघ्राणेन्द्रिय । वही । ग्रहःप्रह.है । सान्चही घ्राणेन्द्रिय । आठ i प्राण, 3