३१० बृहदारण्यकोपनिषद् स० भावार्थ आर्तभाग के चुप होजाने पर लाह्यायनि भुज्यनामक ब्राह्मण याज्ञवल्क्य से पूछता है कि असी हुआ जब हम सब विद्यार्थी व्रताचरण पूर्वक मद्रदेश में विचरते थे, और काप्य पतञ्चल के घर पर आये, वहां देखा कि उनकी कन्या गन्धर्वगृहीत हो रही थी, उस गन्धर्व से जो उसके शरीर विषे स्थित था, हम लोगों ने पूछा, आप कौन है अापका क्या नाम है ? उसने कहा मैं गन्धर्व हूं, मेरा नाम सुधन्वा है, आङ्गिरस गोत्र मे उत्पन्न हुआ हूं। उससे हम लोगों ने अनेक लोकों के बारे में प्रश्न किया, इसका उत्तर उसने यथायोग्य दिया, जब हम लोगों ने उससे पूछा कि हे गन्धर्व ! इस समय पारिक्षित यानी अश्वमेध यज्ञकर्ता के वंशवाले कहां हैं ? जो कुछ उसने उत्तर दिया वह मुझको मालूम है, आप कृपा करके बताइये कि पारिक्षित कहां पर है ? अगर आप ब्रह्मनिष्ठ हैं जैसा आप अपने को समझते हैं तो मेरे इस प्रश्न का उत्तर यथार्थ देंगे ॥१॥ मन्त्रः २ स होवाचोवाच वै सोऽगच्छन्दै ते तद्यत्राश्वमेधया- जिनो गच्छन्तीति क न्वश्वमेधयाजिनो गच्छन्तीति द्वात्रिशतं वै देवरथाद्यान्ययं लोकस्तछ समन्तं पृथिवी विस्तावत्पर्येति ताछ समन्तं पृथिवीं द्विस्तावत्समुद्रः पर्येति तद्यावतीः क्षुरस्य धारा यावदा मक्षिकायाः पत्रं तावा- नन्तरेणाकाशस्तानिन्द्रः सुपर्णो भूत्वा वायवे प्रायच्छत्ता-
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