पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३६३

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अध्याय ३ ब्राह्मण ७ ३४९ न=नहीं । चेद-जानता है । यस्य=जिसका । शरीरम् शरीर । तेजाज है । यो । अन्तरातेज के भीतर रह कर । नेजाज को। यमयति-नियमबद्ध करता है। एषः- वही । ते नेरा । अमृता अधिनाशी। श्रात्मा-पारमा । अन्त- र्यामी अन्तर्यामी है । इति इस प्रकार । अधिदेवतम्= देवता के उद्देश्य से अन्तर्यामी विषय कहा है। प्रथ-अब । श्रधिभृतम् भौतिक विषय कहेंगे। भावार्थ। जो तेज के भीतर बाहर रहता है, जिसको तेज नहीं जानता है, जो तेज को जानता है, जिसका शरीर तेज है, जो तेज के भीतर वाहर स्थित रहकर उसको शासन करता है, जो श्रापका आत्मा है, जो अमृतस्वरूप है, यही वह अन्त- र्यामी है इस प्रकार अधिदैव का वर्णन होकर अधिभूत का प्रारंभ होता है मन्त्रः१५ यः सर्वेषु भूनेपु तिष्ठन्सर्वेभ्यो भूतेभ्योऽन्तरोय; सर्वाणि भूतानि न विदुर्यस्य सर्वाणि भूतानि शरीरं यः सर्वाणि भूतान्यन्तरो यमयत्येप त आत्माऽन्तर्याम्य- मृत इत्यधिभृतमथाध्यात्मम् ।। पदच्छेदः। यः, सर्वेषु, भूतेषु, तिष्ठन् , सर्वेभ्यः, भूतेभ्यः, अन्तरः, यम्, सर्वाणि, भूतानि, न, विदुः, यस्य, सर्वाणि, भूतानि, शरीरम् , यः, सर्वाणि, भूतानि, अन्तरः, यमयति, एपः,