अध्याय ३ ब्राह्मण ९.. श्रोम् हां ठीक है । + पुनः फिर I+ शाकल्यः शाकल्य ने । उवाच-पूछा । याज्ञवल्क्य-हे याज्ञवल्क्य ! । कति एव उसके अन्तर्गत कितने | + देवा-देवता हैं । + याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने ।+ आह-कहा । अध्यर्द्धः अध्यर्द्ध है । शाकल्यः शाकल्य विदग्ध ने । उवाच-कहा । ओम्-हां ठीक है । इति=ऐसा सुन कर । + पुनः फिर । + शाकल्यः शाकल्य ने । उवाच-पूछा । याज्ञवल्क्य हे याज्ञवल्य! । + कति एव-उसके अन्तर्गत कितने । देवा-देवता हैं । + याज्ञवल्क्यःयाज्ञवल्क्य ने । उवाच-उत्तर दिया । एका-एक है । इति इस पर । + शाक- ल्याशाकल्य ने । + पुनः फिर । + पप्रच्छ-पूछा । कति एव% उसके अन्तर्गत कितने देवता हैं । याज्ञवल्क्य: याज्ञवल्क्य ने । उवाच-कहा । ते-। त्रयः तीन । चौर । त्री-तीन । च-और । त्री-तीन । शता-सौ । च-और । त्रया तीन । सहस्रम्हजार हैं । + शाकल्यः शाकल्य ने । + पुनः फिर । + पप्रच्छन्पूछा। कतमे एव-उसके अन्तर्गत कौन से देवता हैं। भावार्थ । तिसके पीछे शाकल्यऋषि के पुत्र विदग्ध ने कहा हे याज्ञवल्क्य ! मैं तुम से पूछता हूँ, आप बताइये कि कितने देवता हैं, इसके उत्तर में याज्ञवल्क्य कहते हैं, हे विदग्ध ! जितने विश्वेदेवसम्बन्धी मन्त्रों में देवता लिखे हैं, उतने ही । हैं, और उनकी संख्या तीन और तीनसौ और तीन और तीन हजार है, इस उत्तर को सुनकर विदग्ध ने कहा हां ठीक है, जितनी देवसंख्या आप कहते हैं उतनी ही है। फिर शाकल्य ने पूछा हे याज्ञवल्क्य ! उनके अन्तर्गत कितने देवता हैं, ऐसा सुनकर याज्ञवल्क्य ने कहा, हे विदग्ध ! उनके
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