अध्याय ३ ब्राह्मण ६ ३८५ संवत्सरस्य-वर्ष के । द्वादशम्यारह । मासाम्-मास । वैन्ही । एतेन्ये । + द्वादश-बारह । श्रादित्याः-सूर्य हैं। एते हि-येही । इदम्-इस । सर्वम्-सब को। श्राददाना:- लिये हुये । यन्ति-गमन करते हैं । यत्-जव कि । श्रादित्या वे सूर्य । इदम् सर्वम्-इस सव को । श्राददानाम् ग्रहण करतें हुये । यन्ति-चले जाते हैं । तस्मात्-इसी से। आदित्या शादित्य । इति करके । + कथ्यन्तेन्वे कहे जाने हैं। भावार्थ । विदग्ध फिर पूछते हैं, हे याज्ञवल्क्य ! आप कृपा करके वताइये वे बारह सूर्य कौन कौन हैं, इस पर याज्ञवल्क्य कहते हैं, हे विदग्ध ! संवत्सर के यानी वर्ष के जो बारह मास होते हैं, वेही बारह सूर्य हैं, वही इस संपूर्ण जगत् को लिये हुए गमन करते हैं, चूंकि वे सूर्य इस सब को ग्रहण किये हुये चलते हैं, इसी कारण वे आदित्य कहे जाते हैं ।।५।। कतम इन्द्रः कतमः प्रजापतिरिति स्तनयित्नुरेवेन्द्रो यज्ञः प्रजापतिरिति कतमः स्तनयित्नुरित्यशनिरिति कतमो यज्ञ इति पशव इति ॥ पदच्छेदः। कतमः, इन्द्रः, कतमः, प्रजापतिः, इति, स्तनयित्नुः, एव, इन्द्रः, यज्ञः, प्रजापतिः, इति, कतमः, स्तनयित्नुः, इति, अशनिः, इति, कतमः, यज्ञः, इति, पशवः, इति । अन्वय-पदार्थ। विदग्धः-विदग्ध । * पुनः फिर । + आह-पूछता है कि ।
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