पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४००

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1 1 ३८६ बृहदारण्यकोपनिपद् स० याज्ञवल्क्य-हे याज्ञवल्क्य !। इन्द्रः इन्द्र । कतमः :-कौन है प्रजापतिः प्रजापति । कतमा =कौन है इति ऐसा । + श्रुत्वा-सुन कर । याज्ञवल्क्यःम्याज्ञवल्क्य । श्राह-बोले कि । स्तनयित्नुः स्तनयित्नु । एव-ही। इन्द्रः इन्द्र है। +चौर । यज्ञः यज्ञ । प्रजापतिः प्रजापति है। इति-ऐसा। + श्रुत्वा-सुन कर । + विदग्धः विदग्ध । पुनः फिर । पृच्छति-पूछता है कि । याज्ञवल्क्य हे याज्ञवल्क्य !। कतमः कौन । स्तनयित्नुः स्तनयित्नु है । इति-ऐसा प्रश्न I+ श्रुत्वा सुन कर । + याज्ञवल्क्य: याज्ञवल्क्य । + थाह-बोले कि । अशनिः बिजली । स्तनयित्नु:-स्तनयिस्नु है । इति-ऐसा उत्तर पाने पर । + पुनःफिर । शाकल्यः विदग्ध । उवाच-बोले । यज्ञायज्ञ । कतमः कौन है । इति इस पर । + याज्ञवल्क्यः- याज्ञवल्क्य ने । उवाच-कहा । पशवः पशु । यज्ञः यज्ञ हैं। भावार्थ । विदग्ध फिर पूछते हैं, हे याज्ञवल्क्य ! इन्द्र कौन है, प्रजापति कौन है, ऐसा सुनकर याज्ञवल्क्य उत्तर देते हैं, हे विदग्ध ! मेघ इन्द्र है, और यज्ञ प्रजापति है, ऐसा सुनकर विदग्ध फिर पूछते हैं, हे याज्ञवल्क्य ! मेघ कौन है, याज्ञ- वल्क्य इसके उत्तर में कहते हैं विद्युत् मेघ है, ऐसा उत्तर पाने पर फिर विदग्ध पूछते हैं कि यज्ञ कौन है, इस पर याज्ञवल्क्य बोलते हैं पशु यज्ञ हैं ॥ ६ ॥ कतम पडित्यग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्च द्यौरचैते पडेते हीदछ सर्वछ पडिति ।।