अध्याय ३ ब्राह्मण जानते हैं तो मैं आपको अवश्य ब्रह्मवत्ता मानूंगा, ऐसा सुन कर याज्ञवल्क्य कहते हैं, हे विदग्ध ! जो सब के आत्मा का परम आश्रय है, और जिसको तुम ऐसा कहते हो उस पुरुप को मैं जानता हूं, जो यह शरीर सम्बन्धी पुरुप है, वही निश्चय करके सब जीवमात्र का आश्रय है, हे विदग्ध ! तुम ठहरो मत, पूछते चले चलो, मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देता चलूंगा, इस पर विदग्ध ने पूछा, हे याज्ञवल्क्य ! उस पुरुप का कारण कौन है, याज्ञवल्क्य ने कहा उसका कारण अमृत यानी वीर्य है ॥ १० ॥ मन्त्रः ११ काम एव यस्यायतनछ हृदयं लोको मनो ज्योति- यो वै तं पुरुष विद्यात्सर्वस्यात्मनः परायण सबै वेदिता स्यात् । याज्ञवल्क्य वेद वा अहं तं पुरुष, सर्वस्यात्मनः परायणं यमात्थ य एवायं काममयः पुरुषः स एष वदैव शाकल्य तस्य का देवतेति स्त्रिय इति होवाच ॥ पदच्छेदः। कामः, एव, यस्य, श्रायतनम् , हृदयम् , लोकः, मनः, ज्योतिः, यः, वै, तम् , पुरुषम् , विद्यात्, सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , सः, वै, वेदिता, स्यात् , याज्ञवल्क्य, वेद, वै, अहम्, तम्, पुरुपम्, सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् ; यम्, आत्थ, यः, एव, अयम्, काममयः, पुरुषः, सः, एषः, वद, एव, शाकल्य, तस्य, का, देवता, इति, स्त्रियः, इति, ह, उवाच ।। 2 .
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