पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४०९

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अध्याय ३ ब्राह्मण'६ ३६५ , . तो मैं आपको सब को ज्ञाता मानूंगा, इस पर याज्ञवल्क्य महाराज कहते हैं कि जो सब के आत्मा का उत्तम प्राश्रय है, उस पुरुप को मैं जानता हूं, जिसके निमवन आप पूछते हैं उसको हे विदग्ध ! सुनो, जो यह कामसम्बन्धी पुरुष है वही जीवमात्र का उत्तम आश्रय है, हे विदग्ध ! और जो कुछ पूछने की इच्छा हो पूछो, शावल्य विदग्ध फिर पूछते हैं, हे याज्ञवल्क्य ! उसका कारण कौन है, इस पर याज्ञवल्क्य जवाव देते हैं, हे विदग्ध ! काम का कारण स्त्रियां हैं ॥११॥ मन्त्रः १२ रूपाएयेव यस्यायतनं चक्षुर्लोको मनो ज्योतिर्यो चै तंपुरुपं विद्यात्सर्वस्यात्मनः परायणस वैवेदिता स्यात् । याज्ञवल्क्य वेद वा अहं तं पुरुपछ सर्वस्यात्मनः परायणं यमात्थ य एवासावादित्ये पुरुपः स एप वदैव शाकल्य तस्य का देवतेति सत्यमिति होवाच ।। पदच्छेदः। रूपाणि, एव, यस्य, आयतनम् . चक्षुः, लोकः, ज्योतिः, यः, वै, तम्, पुरुपम् , विद्यात् , सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , सः, वै, वेदिता, स्यात् , याज्ञवल्क्य, वेद, वै, अहम् , तम्, पुरुपम् , सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , यम्, श्रात्य, यः, एव, असो, श्रादित्ये, पुरुषः, सः, एपः, वद. एव, शाकल्य, तस्य, का, देवता, इति, सत्यम्, इति, ह, उवाच ॥ अन्वय-पदार्थ । यस्य-जिस पुरुप का । रूपाणि एव-रूप ही । आयतनम् मनः, .