पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४२६

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४१२ बृहदारण्यकोपनिपद् स० अन्वय-पदार्थ । अस्याम्-इस । दक्षिणायाम् दत्तिण । दिशि दिशा में। + त्वम्-तुम । किंदेवतः=किस देवतावाले यानी किस देवता को तुम दक्षिण दिशा का अधिपति मानते । असि-हो। इति- इस पर । + याज्ञवल्क्याम्याज्ञवल्क्य ने। + आह-कहा कि । यमदेवतः : यमदेवतावाला मैं हूँ यानी यम को अधिपति मानता हूँ।+ शाकल्यः शाकल्य ने । + ग्राह-फिर पूछा कि । सा=वह । यमः यम देवता । कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्टितः= स्थित है। इति इस पर I +याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने+पाह- कहा कि । यज्ञे यम देवता यज्ञ में स्थित है यानी यम यज्ञ में पूज्य है । इति-ऐमा । + श्रुत्वा-सुन कर । + शाकल्याशाकल्य ने। + आह-पूछा कि । यज्ञायज्ञ । कस्मिन्-किसमें । प्रतिष्ठित स्थित है। नु-यह मेरा प्रश्न है। इति इस पर । याज्ञवल्क्य:- याज्ञवल्क्य ने । + आह-कहा कि । दक्षिणायाम-दक्षिणा में स्थित है। इति इस पर I+शाकल्यः शाकल्य ने 1 + श्राह-पूछा कि । दक्षिणा दक्षिणा । कस्मिन्-किमम । प्रतिष्ठिता-स्थित है । नु यह मेरा प्रश्न है । + याज्ञवल्क्यः याज्ञवल्क्य ने । + श्राह-कहा कि । श्रद्धायाम्प्रदा में स्थित है। हिम्क्योंकि । यदा-जव । पुरुपः पुरुप । थद्धत्ते-श्रद्धा करता है। श्रथ एक- तव ही । दक्षिणाम् दक्षिणा को । ददाति देता है। हि कारण है कि । श्रद्धायाम्-धन्धा में । दक्षिणा दक्षिणा । एव- निश्चय करके । प्रतिष्ठिता-स्थित है । इतिइस पर । शाकल्यः शाकल्य ने । + श्राह पूछा कि । श्रद्धा- श्रद्धा । कस्मिन्-किस में । प्रतिष्ठिता-स्थित है । नु-यह मेरा प्रश्न है । याज्ञवल्क्य: याज्ञवल्क्य ने । उवाच ह-कहा कि। हृदये श्रद्धा हृदय में स्थित है। हिक्योंकि । + जन:- यह