पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४२७

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अध्याय ३ ब्राह्मण १ कि वह पुरुष । हृदयेन हृदय करके । एव-ही। श्रद्धाम्-श्रद्धा को। जानाति जानता है। हि कारण यह है कि । हृदये हृदय में। श्रद्धा-श्रद्धा । प्रतिष्टिता-स्थित । भवति-रहती है। इति इस पर । शाकल्यः-शाकल्य ने । श्राह-कहा । याज्ञवल्क्य% है याज्ञवल्क्य ! । एतत्-यह । एवम् एव-ऐसा ही। अस्ति- है। इति जैसा तुम कहते हो। भावार्थ। हे याज्ञवल्क्य ! इस दक्षिण दिशा में किस देवता को प्रधान मानते हो ? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि मैं यम देवता को प्रधान मानता हूं, शाकल्य ने फिर पूछा यमदेवता किस में स्थित है, याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया वह यमदेवता यज्ञ में स्थित है यानी यज्ञ में उसका पूजन होता है फिर शाकल्य ने पूछा कि यज्ञ किस में स्थित है, याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि दक्षिणा में स्थित है क्योंकि विना दक्षिणा के यज्ञ की पूर्ति नहीं होती है । फिर शाकल्य ने कि दक्षिणा किसमें स्थित है, याज्ञवल्क्ष्य ने उत्तर दिया कि श्रद्धा में स्थित है, क्योंकि जब पुरुष श्रद्धा करता है तभी दक्षिणा देता है, इसलिये दक्षिणा श्रद्धा में स्थित है फिर शाकल्य ने कि श्रद्धा किस में स्थित है, याज्ञवल्क्य ने पूछा उत्तर दिया कि श्रद्धा हृदय में स्थित है, क्योंकि पुरुष हृदय करके ही श्रद्धा को जानता है, इसलिये हृदय में श्रद्धा स्थित है, इस पर शाकल्य ने कहा जैसा तुम कहते हो वैसाही है ॥२१॥ मन्त्र: २२ किंदेवतोऽस्यां प्रतीच्या दिश्यसीति वरुणदेवत